I came across this one more poem by Ayodhaya Singh Upadhaya yesterday and found it very motivating . देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं। रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उबताते नही भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।। हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।। आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही मानते जो भी है सुनते हैं सदा सबकी कही ...
This Priest is an Atheist