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Foreign Investment Promotion Board (FIPB)

The Foreign Investment Promotion Board (FIPB) is a government body that offers a single window clearance for proposals on Foreign Direct Investment (FDI) in India that are not allowed access through the automatic route. FIPB comprises of Secretaries drawn from different ministries with Secretary, Department of Economic Affairs, MoF in the chair. This inter-ministerial body examines and discusses proposals for foreign investments in the country for sectors with caps, sources and instruments that require approval under the extant FDI Policy on a regular basis. The Minister of Finance, considers the recommendations of the FIPB on proposals for foreign investment up to rs.1200 crore. Proposals involving foreign investment of more than rs.1200 crore require the approval of the Cabinet Committee on Economic Affairs (CCEA).

FIPB is mandated to play an important role in the administration and implementation of the Government’s FDI policy. It has a strong record of actively encouraging the flow of FDI into the country through speedy and transparent processing of applications, and providing on-line clarification. In case of ambiguity or a conflict of interpretation, the FIPB has always stepped in with an investor-friendly approach.

The e-filing facility is an important initiative of the Secretariat of the FIPB to further enhance its efficiency and transparency of decision making.

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Following is excerpt from poem Rashmirathi written by Ram dhari singh dinkar. Karna reply to Krishna when he told story of his birth and ask him to join pandava side. सुन-सुन कर कर्ण अधीर हुआ, क्षण एक तनिक गंभीर हुआ,  फिर कहा "बड़ी यह माया है, जो कुछ आपने बताया है  दिनमणि से सुनकर वही कथा मैं भोग चुका हूँ ग्लानि व्यथा  मैं ध्यान जन्म का धरता हूँ, उन्मन यह सोचा करता हूँ,  कैसी होगी वह माँ कराल, निज तन से जो शिशु को निकाल  धाराओं में धर आती है, अथवा जीवित दफनाती है?  सेवती मास दस तक जिसको, पालती उदर में रख जिसको,  जीवन का अंश खिलाती है, अन्तर का रुधिर पिलाती है  आती फिर उसको फ़ेंक कहीं, नागिन होगी वह नारि नहीं  हे कृष्ण आप चुप ही रहिये, इस पर न अधिक कुछ भी कहिये  सुनना न चाहते तनिक श्रवण, जिस माँ ने मेरा किया जनन  वह नहीं नारि कुल्पाली थी, सर्पिणी परम विकराली थी  पत्थर समान उसका हिय था, सुत से समाज बढ़ कर प्रिय था  गोदी में आग लगा कर के, मेरा कुल-वंश छिपा कर के  दुश्मन का उसने काम किया, माताओं को बदनाम किया  माँ...

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