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Passport Seva Kendras (PSK)

The PSP is one of the 27 Mission Mode Projects under the e-Governance programme of the Govt of India. The Project aims at delivering all passport related services to the citizens in a timely, transparent, more accessible, comfortable and reliable manner. The verification of the applicants’ personal particulars will be expedited through electronic linkage of the Project’s portal with the police authorities in the Districts and State capitals, to reduce the delay in verification process. The benefits to the citizens would be service provisioning within defined service levels, closer and larger number of access points for services, availability of a portfolio of on-line services with real-time status tracking and enquiry, 24 x 7 call centre with facility to obtain information in vernacular language, an effective system of grievance redressal, adherence to the ‘First in-First out’ principle in rendering the services and facility of child care and refreshments at the PSKs. The number of public dealing counters will go up from the current 350 to 1610 and public dealing hours will go up from the current 4 hours to 7 hours.

The govt is planning to open 77 PSKs . The matter of opening more Passport Offices and PSKs in the country would be looked into after complete roll-out of the Passport Seva Project involving operationalisation of 77 PSKs.

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Following is excerpt from poem Rashmirathi written by Ram dhari singh dinkar. Karna reply to Krishna when he told story of his birth and ask him to join pandava side. सुन-सुन कर कर्ण अधीर हुआ, क्षण एक तनिक गंभीर हुआ,  फिर कहा "बड़ी यह माया है, जो कुछ आपने बताया है  दिनमणि से सुनकर वही कथा मैं भोग चुका हूँ ग्लानि व्यथा  मैं ध्यान जन्म का धरता हूँ, उन्मन यह सोचा करता हूँ,  कैसी होगी वह माँ कराल, निज तन से जो शिशु को निकाल  धाराओं में धर आती है, अथवा जीवित दफनाती है?  सेवती मास दस तक जिसको, पालती उदर में रख जिसको,  जीवन का अंश खिलाती है, अन्तर का रुधिर पिलाती है  आती फिर उसको फ़ेंक कहीं, नागिन होगी वह नारि नहीं  हे कृष्ण आप चुप ही रहिये, इस पर न अधिक कुछ भी कहिये  सुनना न चाहते तनिक श्रवण, जिस माँ ने मेरा किया जनन  वह नहीं नारि कुल्पाली थी, सर्पिणी परम विकराली थी  पत्थर समान उसका हिय था, सुत से समाज बढ़ कर प्रिय था  गोदी में आग लगा कर के, मेरा कुल-वंश छिपा कर के  दुश्मन का उसने काम किया, माताओं को बदनाम किया  माँ...

रश्मिरथी ( सप्तम सर्ग ): कर्ण वध - रामधारी सिंह 'दिनकर'

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