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Showing posts from August, 2012

Some of the my favourite couplets written by Kabir

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।। ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय।। बुरा जो देखन मैं चली बुरा ना मिल्या कोय। जो मन खोजा आपना मुझ से बुरा ना कोय।। माया मरी ना मन मरा मर मर गए शरीर। आशा तृष्णा ना मरी कह गए दास कबीर।। पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़। ताते या चाकी भली, पीस खाए संसार।। कॉंकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय। ता चढ़ मुल्‍ला बॉंग दे, बहिरा हुआ खुदाए।। निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय। बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।। अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।