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मोची




मुंबई स्थित मलाड स्टेशन के बाहर बैठने वाला एक मोची मेरे लिए पिछले 4 महीनों से कौतूहल का विषय बना हुआ था। 4 माह पूर्व मैंने मलाड स्थित एक कंपनी में नौकरी ज्वाइन की थी, यद्यपि मेरी पिछली नौकरी की तुलना में वेतन यहां कुछ कम था परंतु महत्वपूर्ण बात यह थी कि यह मेरे निवास स्थान बोरीवली से बहुत ही नज़दीक था जिसकी वजह से मुझे सुबह एवं शाम दोनों वक्त स्वयं के लिए समय मिल जाता था।

मेरी अन्य आदतों में एक बहुत ही गैर जरूरी आदत यह रही है कि मैं रोज ऑफिस जाने से पहले अपने जूते मोची से पॉलिश करा कर जाता रहा हूं। ऑफिस का वक्त 9:30 बजे प्रारंभ होता था और मैं सामान्यता 9:15 बजे मलाड स्टेशन पर उतर कर अपने जूते पॉलिश कराने के पश्चात 9:25 बजे तक ऑफिस पहुंच जाया करता था। नई नौकरी ज्वाइन किए हुए करीब 1 हफ्ते का वक्त गुजरा होगा मैं रोज की तरह स्टेशन से उतर कर जिस जगह कतार में 5-6 मोची बैठे रहते थे उस और अपने जूते पॉलिश कराने के उद्देश्य से गया। आज मैं समय से थोड़ा पहले निकला था, वक्त करीब 9:00 बज रहे थे मैंने देखा की बाकी सभी मोची व्यस्त थे एवं एक थोड़ा अलग सा दिखने वाला मोची अभी अभी तुरंत ही आया था। उसे खाली देखकर, मैं उसकी तरफ लपका ताकि मुझे इंतजार ना करना पड़े एवं अपने जूते आगे कर अपने मोबाइल फोन पर बातें करने लगा।

5 मिनट भी ना बीता होगा की मोची ने बोला कि साहब आपके जूते पॉलिश हो गए हैं। मैंने अपनी जेब से ₹20 का नोट निकाल कर दिया, जिस पर मोची ने मुझे ₹15 वापस किए। मैंने 15 में से ₹10 वापस मोची की तरफ बढ़ाते हुए बोला कि आपने शायद गलती से ज्यादा पैसे वापस कर दिए, यहां मैं रोज पॉलिश करवाता हूं और बाकी सभी तो मुझसे ₹15 लेते हैं। मोची ने बोला कि साहब बाकी सबका मुझे पता नहीं परंतु मैं पॉलिश के ₹5 ही लेता हूं। यह जवाब मेरे लिए आश्चर्यजनक था, एक ही जगह पर इतना अंतर समझ के परे था परंतु अत्यंत व्यवस्था के कारण मैंने इस बात पर ज्यादा गौर नहीं किया और मुझे तो किसी तरह का नुकसान था ही नहीं। उस दिन के पश्चात जब भी अपने सामान्य समय 9:15 वहां जाता था तो हमेशा उस मोची को व्यस्त पाता था जिसकी वजह से मैं दुबारा उसके पास ना जा सका। मैं सोचता था कि क्योंकि यह बहुत कम पैसे लेता है शायद इसीलिए इस के यहां पर इतनी ज्यादा भीड़ रहती है।

एक दिन मैं निजी कार्य में व्यस्त होने के कारण ऑफिस के लिए थोड़ा लेट निकला एवं स्टेशन पर 10:00 बजे पहुंचा, मैंने वहां देखा कि वह मोची अपने सामान समेटकर वापस जा रहा था। मैं दूसरे मोची के पास गया एवं उसे अपने जूते देते हुए बस यूं ही पूछ लिया कि “यह आपके बगल वाला आज बहुत जल्दी जा रहा है कोई विशेष बात हुई है क्या?” उस मोची ने मेरी तरफ देखा और कहा “साहब यह तो केवल 1 घंटे के लिए यहां आते हैं और रोज इसी समय वापस चले जाते हैं”। उत्सुकता वश मैंने पूछ लिया “और बाकी सभी लोग” जिसका जवाब यह मिला की “हम सब लोग तो सुबह 8:30 बजे से शाम के करीब 6:00 बजे तक यहीं पर रहते हैं”। मैंने थोड़ा और जानने की कोशिश की तो पता चला कि वहां पर रहने वाले बाकी लोग उस, समय के पाबंद, मोची के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे। उन्हें बस यह पता था कि वह 9:00 बजे आता केवल अपना कार्य करता,ना किसी से ज्यादा बात करता, ना अपना समय कहीं और लगाता और 10 बजते ही वहां से चला जाता था, इसके साथ-साथ उसकी विभिन्न कार्यों की दर भी बाकी लोगों से काफी कम थी। इसके बावजूद बाकी लोगों को उससे दर को लेकर के समस्या इसलिए नहीं थी क्योंकि वह निश्चित 1 घंटे के लिए ही वहां पर कार्य करता था एवं उसका व्यवहार भी बहुत ही शालीन था।

मैंने उस मोची के बारे में और भी पता करने की कोशिश की परंतु मुझे ज्यादा कुछ पता नहीं चल पाया, एक दो बार तो मैंने उसका पीछा भी किया कि वह कहां जाता है कहां रहता है एवं अपने दिन का समय किस प्रकार व्यतीत करता है। मुझे लगता था कि संभवतः वह कहीं और जाकर के या तो मोची का कार्य या अन्य कोई मजदूरी करता होगा, परंतु वह वहां से जाने के पश्चात मलाड स्टेशन से बांद्रा की तरफ जाने वाली लोकल पकड़ता था एवं ट्रेन की भीड़ में कहीं गुम हो जाता था। काफी कोशिश के पश्चात भी जब मुझे ज्यादा कुछ पता ना चल पाया तो मैंने भी कोशिश करना बंद कर दिया।

वक्त बीतता गया एवं मैं अपने जीवन की भाग दौड़ में व्यस्त हो गया। आज मैं एक अन्य बड़ी कंपनी से प्रोजेक्ट लेने के लिए मैं अपनी कंपनी की तरफ से प्रेजेंटेशन देने आया हुआ था। यह हमारी कंपनी के लिए संभवत सबसे महत्वपूर्ण अवसर था एक बड़ा प्रोजेक्ट पाने का। वहां प्रेजेंटेशन में कई लोग बैठे थे जो तरह-तरह के सवाल जवाब कर रहे थे उनमें से एक करीब 50 वर्ष का व्यक्ति बहुत हटके एवं उम्दा किस्म के सवाल पूछ रहा था। थोड़ी देर तक सवाल-जवाब के पश्चात मुझे कुछ ऐसा महसूस हुआ कि मैंने इस व्यक्ति को कहीं देख रखा है, थोड़ा और गौर से देखा तो मुझे ऐसा लगा कि संभवतः इसकी शक्ल उस मलाड स्टेशन वाले मोची से काफी मिलती-जुलती है। जब मैं उस मोची के बारे में पता कर रहा था तो उसी दौरान मैंने कुछ फोटो भी क्लिक की थी। इतनी मिलती जुलती शक्ल देख कर मुझ से रहा न गया तो मैं प्रेजेंटेशन के पश्चात अपने मोबाइल में फोटो देखा तो यह पाया कि शक्ल बिल्कुल हूबहू मिल रही थी साथ साथ चेहरे पर चोट के निशान भी आपस में मिल रहे थे।

मेरे लिए बहुत ही विस्मयकारी स्थिति बन गई थी, एक तरफ तो मैं है पूछना चाह रहा था कि क्या आप उस मोची से कोई संबंध रखते हैं वहीं दूसरी तरफ मुझे यह लग रहा था कि मेरे इस सवाल से नाराज होकर कहीं कंपनी का प्रोजेक्ट हाथ से ना चला जाए। काफी प्रयास के पश्चात भी मैं अपनी जिज्ञासा पर काबू न पा सका व जाकर उन महानुभाव से पूछ ही बैठक की क्या आप कभी मलाड स्टेशन की तरफ गए हैं। उन्होंने मेरी तरफ प्रश्नवाचक नजरों से देखा एवं थोड़ी दूर चुप रहे, उनके कुछ बोलने से पहले ही मैंने स्थिति संभालते हुए बोला कि “मैंने तो यूं ही किसी और के भ्रम में संभवत यह सवाल आप से कर लिया कृपया इसे अन्यथा ना लें” । उन्होंने बोला अरे नहीं, नहीं मैं जानता हूं आप मुझसे क्यों पूछ रहे हैं, मुझे पता था कभी ना कभी कोई न कोई मुझसे यह प्रश्न जरूर करेगा। “तो क्या वह मोची आप ही है?” हड़बड़ाहट में मैंने सीधे यह पूछ लिया। उन्होंने कहा हां मैं ही वहां पर रोज सवेरे 9:00 से 10:00 जाता हूं, इस जवाब ने ना केवल मुझे आश्चर्यचकित किया परंतु साथ था बहुत से सवाल मन में खड़े कर दिए।

उन महानुभाव ने शांतिपूर्वक मुस्कुराते हुए कहा कि इतने आश्चर्यचकित होने की जरूरत नहीं है, मैं तो वहां अपने स्वयं के लिए जाता हूं ताकि मैं अपने आप से जुड़ा रहा हूं, मुझे याद रहे कि मैं कहां से आगे बढ़कर यहां तक पहुंचा हूं और साथ साथ मुझे जमीनी स्तर से नई नई जानकारी भी मिलती रहे।

देश की संभवत सबसे बड़ी जूते की कंपनी के मालिक का इतना सरल एवं सटीक जवाब सुनकर मैं अवाक सा रह गया……...

Comments

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  2. That's the awareness about oneself !👍

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  3. यथार्थ दृष्टान्त.....सहज परिचय....✍✍ बहुत खूब 👏👏.....Go ONNN....💫💫21

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  4. Kya baat Sir, Dil ko Chu Gaya wastav me

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  5. It's very emotional.... N thought provoking ! Very well penned down.
    Our Sense of gratitude privails�� more ,when we are attached to our surroundings n roots
    Dr Arsha Chaudhary.

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  6. Commendable.... Very clearly narrated and thought provoking story with great inspiring stance. Well framed and articulated. Looking forward to read more such creative narrations.
    @Ayushi

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  7. Awesome …

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  8. खुद को ढूंढने गर हम निकलें तो हम सब कुछ पा सकते हैं जो अप्राप्य है
    जमीन से जुड़ाव की यह कथा वाकई अनुकरणीय है

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  9. नाज़िम बेरीFebruary 2, 2023 at 12:03 AM

    बहुत उम्दा 👍

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  10. Heart touching real story....jai hind

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